*मां_बाप से बड़ा भगवान नहीं...भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसरण से ही सुख शांति और समृद्धि होगी हासिल...* अधिवक्ता चितरंजय सिंह*



आज साल २०२५ विदाई की ओर है तथा कल १ जनवरी २०२६ को हम नववर्ष का हम स्वागत करने आतुर हैं; है तब निश्चित रूप से यह चिंतन की बेला है कि बीते साल में क्या कुछ खोया ? और क्या कुछ मिला? तो सबसे खोने वाली बात है तो हम अपनों अर्थात रिश्तों को तेजी से खोते जा रहे हैं तो वहीं जिस आधुनिक संपर्क स्रोत अर्थात डिजिटल युग की खास उपलब्धि मोबाइल के माध्यम से सात समंदर पार चंद पलों में सब कुछ हासिल करने को आतुर हैं। परंतु यक्ष प्रश्न यह है कि इस गतिशील युग में पलक झपकते सब कुछ पा लेने का यह आविष्कार ही हमारा सब कुछ छीनता नजर आ रहा है। आज एक ही छत के नीचे रहने वालों मां_बाप, पिता_पुत्र आदि सभी रिश्तेदार महीनों भी प्रत्यक्ष नहीं मिल पाते...फलस्वरूप रिश्ते टूट रहे हैं, परस्पर संवेदनाएं खत्म हो गई है।

तब यही कहा है सकता है कि इस नई ईजाद मोबाइल;यद्यपि विकासवादी सोच का प्रतिनिधत्व कर रहा है पर उसके आगोश के अतिरेक में हमारी परिवारवादी सोच खत्म हो चली है और सुखों की दरिया सुख रही है। …और क्षण भर की प्रतिकूलता से ही हम व्याकुलता, अवसाद के साथ आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं।

फिर हमारा बचपन , युवापन का आनंद भी हम परिवार से परे खोजने लगे हैं और जिन्होंने हमें पैदा किया, पाल_पोष कर समाज में खड़े होने के काबिल बनाया, उनसे ही दूरी बनाकर प्यार_वासना के वशीभूत हम स्वार्थवश, उन्हें एकांत में एकांकी जीवन के लिए मजबूर कर रहे हैं और वे अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम को मुंह ताकने को मजबूर हैं। क्या यही भारतीय संस्कृति व परंपरा है?

बिल्कुल नहीं ... फिर किस लिए, किसके लिए इस आविष्कार के प्रति आसक्ति, जो हम सबको मानसिक एवं शारीरिक रूप से अपंग बना रही है, कदापि उचित नहीं है ।

खासकर! जब इसके सान्निध्य में हम सर्वथा झूठे, बेवफा साबित होकर अपनों का विश्वास खोने को मजबूर हैं और सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते तार_तार हो रहे हैं, क्योंकि यहां सीधे संवाद के अभाव में कोरे झूठ परोसे जा रहे हैं। 

फिर आइए! हम सब अपने पारिवारिक रिश्ते और सामाजिक जीवन को बचाने नववर्ष में संकल्प लें ! जो अपने हैं उनसे पारिवारिक संस्कारों, उत्सवों एवं कार्यक्रमों में प्रत्यक्ष मिलें...और सपरिवार मिलें तथा संयुक्त परिवार के मूल आनंद का भरपूर मजा लें, तो वहीं सामाजिक समरसता को अपने व्यवहार में शामिल कर सामूहिक जश्न में शिद्दत के साथ शामिल हों। साथ ही आत्मिक सुख शांति के लिए आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों में सामूहिक रूप से शामिल होकर अपनों का आशीर्वाद पाकर अपना आत्म बल बढ़ावें।

एक महत्वपूर्ण आग्रह और... हम नव ग्रहों के अनिष्ट का भय त्याग कर सभी ग्रहों के उत्पत्ति के कारक अर्थात हमको पैदा करने वाले अपने माता_पिता की सेवा और सम्मान कर अपने जीवन को सुखी और समृद्धशाली बनाएं । क्योंकि जिसने आपको जीवन दिया... और उसे आपने सुख नहीं दिया तो आपके ग्रह कितने भी मजबूत क्यों न हो आप तन_मन_धन से सुखी नहीं हो सकते... इसलिए विगत कल में खुद के द्वारा जाने_ अनजाने में हुई गलतियों के लिए सच्चे दिल से प्रायश्चित कर मां _बाप से माफी मांग लेवें और आने वाले समय में अपनों का मान_सम्मान करें और उनके आशीर्वाद क की छाया में दृढ़ता के साथ कर्तव्य पथ पर अग्रसर हो तो निश्चित रुप से हम, हमारा परिवार , हमारा समाज और हमारा राष्ट्र सुख, शांति के साथ समृद्धशाली बनेगा ।

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