करोड़ों की दवाइयां एक्सपायर, मरीजों तक पहुंचने से पहले बर्बाद, लापरवाही नहीं, बल्कि घोटाले की बू ,जिला अस्पताल में लापरवाही, उजागर हुआ स्वास्थ्य तंत्र का काला सच




सक्ती। जिला अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचा है। ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के तहत सप्लाई हुई करोड़ों रुपये की दवाइयां मरीजों तक पहुंचने से पहले ही कचरे में चली गईं। दवाइयों को जिले के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में बांटना था, लेकिन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी और स्टोर किपर के ढीले रवैये और लापरवाही के कारण करोड़ों रुपये की दवाइयां न तो समय पर वितरण हो सका और न ही स्टॉक का सही रख-रखाव किया गया। नतीजा यह हुआ कि बड़ी मात्रा में दवाइयां एक्सपायर हो गईं। जबकि गरीब और ग्रामीण मरीज दवाइयों के लिए भटकते रहे। सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी खेप को मरीजों तक पहुंचने से पहले ही क्यों सड़ा दिया गया..? जिला अस्पताल की बदइंतजामी अब सीधे-सीधे घोटाले का रूप ले चुकी है। ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के तहत सप्लाई हुई करोड़ रुपये की दवाइयां मरीजों तक पहुंचने से पहले ही गोदामों में एक्सपायर और खराब हो गईं। गरीब मरीज दवा के लिए भटकते रहे और महंगी दवाइयां बाजार से खरीदते रहे, जबकि जिला अस्पताल के स्टोर रूम में सरकारी खजाना सड़ता रहा।


स्टोर रूम में सड़ती रही दवाइयां, मरीजों ने जेब से पैसे देकर खरीदी दवा



मुफ्त दवा योजना के तहत ज़रूरतमंद मरीजों को मिलने वाली यह दवाइयां समय पर स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध नहीं हो सकीं। गरीब और ग्रामीण मरीज खुले बाजार से महंगी दवाइयां खरीदने को मजबूर होते रहे, जबकि जिला अस्पताल के गोदाम में करोड़ों की दवाइयां सड़ती रहीं। सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल बड़ी खेप में दवाइयां जिला अस्पताल पहुंची थीं। इन्हें जिले के प्राथमिक और उप स्वास्थ्य केन्द्रों तक भेजना था, लेकिन महीनों तक गोदाम में ही रख छोड़ा गया। नतीजा एक्सपायरी डेट गुजर गई और करोड़ों का स्टॉक कचरे में बदल गया।



न कोई जांच आदेश, न कोई जिम्मेदारी तय


मामले पर जिम्मेदार अधिकारी खामोश हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसकी मिलीभगत से इतना बड़ा नुकसान हुआ..? स्वास्थ्य विभाग की यह खामोशी ही बताती है कि यह मामला सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि घोटाले की बू देता है। स्टोर रूम में सड़ती रही दवाइयों ने फिर साबित कर दिया कि योजनाओं के नाम पर गरीबों का हक छिना जा रहा है और सरकारी खजाने को लूट का साधन बनाया जा रहा है। सूत्र बताते है कि जिला अस्पताल प्रबंधन इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। न कोई जांच आदेश, न कोई जिम्मेदारी तय। सूत्रों का कहना है कि दवाइयों की बर्बादी को छुपाने के लिए रिकॉर्ड में हेरफेर तक की कोशिश की जा रही है। जिला स्टोर रूम से निकली करोड़ों की एक्सपायरी दवाओं ने साबित कर दिया है कि योजनाओं का असली फायदा मरीजों को नहीं बल्कि लापरवाह अफसरों और टेंडर माफिया को मिल रहा है।



जिले में चर्चा आम होगी कार्रवाई या फिर दबाया जाएगा मामला


करोड़ों की एक्सपायरी दवाओं का मामला सामने आने के बाद पुरे जिले में चर्चा हो रही है कि यह मामला सिर्फ सरकारी पैसों का नुकसान नहीं, बल्कि गरीबों के जीवन से खिलवाड़ है। अगर दवाइयां समय पर मरीजों तक पहुंचतीं तो न जाने कितने गरीब परिवारों को राहत मिलती। अब सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार अफसरों व स्टोर किपर पर कार्रवाई होगी..? क्या सरकार जांच कमेटी गठित करेगी..? या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह दबा दिया जाएगा..?



जिम्मेदारों की चुप्पी संदिग्ध, घोटाले जैसे सवाल..?



1. जब एक्सपायरी डेट साफ लिखी थी तो समय पर वितरण क्यों नहीं हुआ..?


2. स्टॉक की नियमित मॉनिटरिंग, वेरिफिकेशन किसने और क्यों नहीं किया..?


3. क्या जानबूझकर दवाइयों को खराब होने दिया गया ताकि नए टेंडर और सप्लाई का रास्ता खुले..?


4. अगर दवाइयां खराब हो रही थीं तो क्या जिम्मेदारों ने समय रहते सरकार को जानकारी दी..?

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