रियासत काल से सक्ती राज परिवार की अहमियत... सुरेंद्र बहादुर सिंह : एक नायाब राजा का स्वर्गवास

 


ब्रिटिश काल (१९६५) में जब १४ रियासतों का गठन हुआ तब छत्तीसगढ़ में बस्तर सबसे बड़ा रियासत था तो वहीं सक्ती सबसे छोटा रियासत था, तब सक्ती के सर्वप्रथम राजा हरि गुजर ने गद्दी संभाली जिसके उत्तराधिकारी रूपनारायण सिंह ने १९१४ तक राज काज चलाया जिसकी एकमात्र बेटी की शादी रायगढ़ राजा नटवर सिंह के साथ हुई और उन्होंने छोटे भाई चित्रभान सिंह के बटे लीलाधर सिंह को गोद लिया जिसके एकमात्र पुत्र जीवेंद्र बहादुर सिंह बिना राजतिलक हुए अल्पायु में ही निधन हो जाने से लीलाधर सिंह की १९६० में मृत्यु होने पर सीधे सुरेन्द्र बहादुर सिंह मात्र १८ वर्ष की आयु में सक्ती रियासत के अंतिम शासक के रूप में राज सत्ता के सिंहासन पर आसीन लोकतंत्र प्रहरी के रूप में विधायक के साथ तत्कालीन मध्यप्रदेश में मंत्री पद को सुशोभित करते हुए जांजगीर जिला की नींव रखा।

मध्य प्रदेश अथवा छत्तीसगढ़ की राजनीति हो या दिल्ली की राजनीति हो, राजा सुरेन्द्र बहादुर सिंह राजनीति में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में अपनी भूमिका सुनिश्चित करते रहे। उनका कद इतना बड़ा रहा कि वर्तमान सक्ती जिले की राजनीति में स्वर्गीय वेदराम एवं स्वर्गीय भवानीलाल वर्मा के मंत्री होने पर भी राजा साहब एक विधायक रहकर भी भारी पड़ते रहे। सक्ती अंचल की राजनीति में विपक्षी भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। सक्ती की जनता विगत समय से राजनीति में उनकी अनुपस्थिति से क्षेत्र की जनता उनके अभाव को लेकर हमेशा असहज महसूस करती रही है आज उनके अवसान पर सक्ती अंचल मर्माहत है निश्चित रूप से उनके निधन से हुई क्षति की भरपाई हो ऐसा नेतृत्व शायद ही सहज रूप से मिले। आज इन पलों में राज परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए उच्च न्यायालय अधिवक्ता चितरंजय पटेल ने कहा कि राजा साहब और उनका अंदाज हमेशा लोगों के दिलों में राज करेगा । उन्होंने आगे कहा कि भगवान राजा साहब की आत्मा को शांति व सद्गति प्रदान करें तथा राज परिवार को इस आघात को सहन करने हेतु संबल प्रदान करें।

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