**न्याय प्रिय, कुशल प्रशासक, बहुआयामी व्यक्तित्व व बहुमुखी प्रतिभा की धनी देवी अहिल्या... अधिवक्ता चितरंजय पटेल* *



 *लोकमाता देवी अहिल्या के ३००वीं जयंती समारोह पर विशेष...* 

देवी अहिल्या,महारानी अहिल्या, जन हितैषी अहिल्या, पशु प्रेमी अहिल्या,                                                 शिवभक्त धर्म पारायण अहिल्या, गरीबों की मसीहा अहिल्या, कुशल प्रशासक अहिल्या, विधवाओं की जीवनदात्री अहिल्या, पर्यावरण प्रेमी अहिल्या, देवालयों की स्थापक अहिल्या, न्यायप्रिय अहिल्या, जनजाति हितकारी अहिल्या, प्रजा के दिलों में राज करने वाली महारानी अहिल्या, किसान कल्याणी अहिल्या,  नारी का सम्मान करने वाली नारीशक्तिकरण की मिसाल अहिल्या, अपने हर श्वास में शिव को याद करने वाली अहिल्या...अर्थात मल्टी टैलेंटेड, मल्टी टास्किंग बहुआयामी, प्रतिभाओं की खान, बहुमुखी प्रतिभा की धनी देवी अहिल्या होलकर के ३००वीं जयंती समारोह का आयोजन देश प्रदेश में अलग अलग स्तरों में हो रहा है इसमें सर्व समाज की सहभागिता एक सार्थक पहल साबित होगा। 

चूंकि आज परिवार_ समाज, प्रदेश_देश में हर स्तर पर कहीं न कहीं कोई कमी हमको साल रही है तथा हमारे नैतिक बल को अशक्त बना रही है। शायद! इसका कारण हम सबका हमारे अपने भारतीय धर्म संस्कृति से भटकाव है जो विदेशी आक्रांताओं, चाहे मुगल हों या अंग्रेज हों सभी ने इस देश की धर्म,अध्यात्म व संस्कृति को इस कदर छेड़ा कि हम आपसी भाईचारा, सामाजिक समरसता, वसुधैव कुटुंबकम् के भाव से विमुख होते चले गए क्योंकि आजादी के बाद भी जाति व समाज के नाम पर लोगों को बांटकर सत्ता की राजनीति करने वाले तथाकथित हमारे अपने लोगों ने हमारे समृद्ध इतिहास और विरासत से हमारी नयी पीढी को जान बूझकर दूर रखा। आजाद भारत के निर्माता कहलाने वाले नेहरू ने अपनी कुर्सी के खातिर शिक्षा और न्याय विभाग तथाकथित  वामपंथियों के हिस्से में दे दी जिन्होंने अकबर को महान तो महाराणा प्रताप को आतताई बताया फलस्वरूप देश के प्रतिष्ठित विश्व विद्यालयों में  कन्हैया कुमार जैसे लोग भारत माता की जय कहने के बजाय भारत के तेरे टुकड़े होंगे...जैसे नारे लगाने की हिमाकत करने लगे तब देश में आज की राष्ट्रवादी सरकार ने नई शिक्षा नीति की संकल्पना के साथ भारत के मान सम्मान और अस्मिता के प्रतीक  अहिल्या देवी जैसे देवियों के जीवन चरित्र को भावी पीढ़ी के समक्ष रखकर भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापन का अद्भुत प्रयास प्रारंभ किया है जो स्वागतेय है अनुकरणीय है इस दिशा में पहल औपचारिकता के लिए नहीं बल्कि पूरे मन से होना चाहिए तथा लोकमाता देवी अहिल्या के जीवन चरित्र को लेकर जन जन तक पहुंचाने का प्रयास धरातल पर दिखाई देना चाहिए और यह तभी संभव है जब हम स्वयं उनके जीवन संदर्भों को जन समझ लें, तब तो जयंती मनाने का सही अर्थ है।

 इस संबंध में हम स्वयं देवी अहिल्या के जीवन को जब निहारते हैं तब नजर आता है कि ग्रामीण पृष्ठ भूमि के  साधारण परिवार की बालिका से एक असाधारण शासक देवी अहिल्या ने महारानी के रुदबे से परे हमेशा प्रजा के बीच रहकर जीवन गुजारा और एक कुशल प्रशासक की भांति प्रतिदिन जनता दरबार में लोगों के मामले सुलझाती  रही जो आज भी प्रासंगिक है।

देवी अहिल्या ने समाज में विधवा महिलाओं की बदतर स्थिति का विरोध करते हुए उनके उज्जवल भविष्य और सम्मान को स्थापित करने उन्हें पति की संपत्ति में समान हक दिलाकर इनको समाज मुख्य धारा में लेकर आई । 

नारी सशक्तिकरण की मिसाल देवी अहिल्या ने बचपन से ही तमाम पाबंदियों के बावजूद समाज सेवा में बढ़ चढ़कर शामिल रही जिसे प्रत्यक्ष देख कर इंदौर के शासक मल्हार राव होलकर ने उन्हें अपनी बहु बनाया तब रानी अहिल्या बन अपने छोटे गांव से इंदौर राज महल तक पहुंच गई।

देवी अहिल्या के जीवन पति_पुत्र की दुखद अभाव तथा पिता_गुरु समान ससुर के निधन के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी वह दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अपने पथ पर अविचल अडिग चलती रही।

पर्यावरण संरक्षण का अप्रतिम   उदाहरण के रूप में देवी अहिल्या प्रतिदिन शिव के पार्थिव अभिषेक के बाद विसर्जन के समय मिट्टी में बीजों को डाल देती थी जिससे बीज जलीय जीव जंतुओं के भोजन अथवा नदी किनारे आकर पौधे के रूप में अपने आप पर्यावरण सुरक्षा के काम आता था।

न्याय की प्रतिमूर्ति अहिल्या दंड देने के बजाय दोषी के सुधार पर बल देती थी जिस बात का समर्थन आज हमारी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी न्यायपालिका के साथ संबोधन में करती हैं। देवी अहिल्या वनों में रह रहे जनजाति समाज के बेहतर जीवन की चिंता कर उन्हें जंगलों से लाकर गांव में गुजर_बसर हेतु प्रेरित कर उद्योग धंधों से जोड़ने का प्रयास किया और महेश्वर का विख्यात वस्त्र उद्योग इसका साक्षात् उदाहरण है।

इस संदर्भ में प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू के शब्दों में,  *अहिल्या के ३० वर्षों का शासन सुशासन एवं व्यावसायिक प्रगति की दृष्टि से स्मरणीय है। 

अहिल्या ने धर्म और संस्कृति संरक्षण के लिए सतत समर्पित रह कर देश भर में देवालयों, धर्मशालाओं, जलाशयों व घाटों का निर्माण तथा सोमनाथ के साथ ही देश के प्रमुख मंदिरो के जीर्णोद्धार में अपना योगदान सुनिश्चित किया। 

अहिल्या धर्म पारायण होकर भगवान शिव की परम भक्त थी उनके अनुसार_ *कर्ता भी शिव, कर्म भी शिव, क्रिया भी शिव और कर्म फल भी शिव अर्थात हर पल, हर श्वास शिव का वास होन चाहिए* । उन्होंने राज्यादेश में कभी भी हस्ताक्षर नहीं किया बल्कि उनके राज मुहर में शिव के प्रतीक बेल पत्र और नंदी अंकित होता था, वह प्रतिदिन ब्रम्हमुहूर्त में जागकर शिव पूजन कर दिनचर्या शुरू करती थी तथा आज महेश्वर (इंदौर), भेड़ा घाट (जबलपुर), बनारस, हरिद्वार आदि प्रमुख स्थलों में स्थापित शिव लिंग एवं मंदिर  लोगों के आस्था के केंद्र है। आज उनके जीवन के आदर्शों को हम आत्मसात करें तो सचमुच राम राज्य और सुशासन धरातल पर होगा । देवी अहिल्या के जयंती के ३ शताब्दी पूर्णता की ओर है तब  उनके जीवन संदर्भों को चिन्हित कर जन जन तक पहुंचाने के पवित्र कार्य  निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति के पुनर्स्थापन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।

इन्हीं कामनाओं के साथ देवी अहिल्या को  सादर नमन... पुष्पांजलि...

कि  जिसने समाज को सशक्त किया।

संकल्पों को संगठित किया ।।

नमन है देवी स्वरूपा अहिल्या  को, 

जिनकी साधना ने न किसी का अहित किया ।।

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